142 करोड़ की जनसँख्या को पार कर चुके भारत की जनसँख्या विस्तार गति में पिछले कुछ दशकों में कमी तो आई है, परन्तु अगले कुछ दशकों तक जनसँख्या के बढ़ने की ही उम्मीद है।
लेखक: शुभम मुद्गिल और रोहित कुमार
यह 11 जुलाई, 2023 को दैनिक जागरण में प्रकाशित लेख का लंबा संस्करण है।
वर्ष 1990 में आज ही के दिन पहली बार विश्व जनसंख्या दिवस मनाया गया। उस समय 90 देशों की भागीदारी से आरम्भ हुए इस दिवस को आज विश्व भर में जनसंख्या मुद्दों और समाज के विभिन्न पहलुओं पर उनके प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने हेतु आयोजित किया जाता है। इसके अंतर्गत जनसंख्या से संबंधित अनेकों मुद्दों; जैसे परिवार नियोजन, जनस्वास्थ्य, लैंगिक समानता और सतत विकास, पर चर्चा होती है। हालाँकि इस बार विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले देश के तौर पर भारत का ये पहला जनसँख्या दिवस है।
142 करोड़ की जनसँख्या को पार कर चुके भारत की जनसँख्या विस्तार गति में पिछले कुछ दशकों में कमी तो आई है, परन्तु अगले कुछ दशकों तक जनसँख्या के बढ़ने की ही उम्मीद है। वर्ष 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार जनसँख्या विस्तार के चलते 2041 तक भारत की कामकाजी उम्र की आबादी (20-59 वर्ष) कुल आबादी का 59% होने की उम्मीद है। यह भारत को एक स्वर्णिम जनसांख्यिकीय लाभांश प्रदान करेगी। परन्तु बढ़ती जनसँख्या अपने साथ कुछ समस्याएं भी लाएगी, जिसे समय रहते समझना होगा।
जनसँख्या विस्तार के परिणामस्वरूप समाज में प्रत्येक व्यक्ति को जीवनयापन हेतु बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती होगी। यह समस्या इसलिए भी गंभीर है क्यूंकि बिजली, पानी, पर्याप्त आहार और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं के आभाव से न केवल किसी व्यक्ति या समूह को हानि होगी बल्कि इससे सम्पूर्ण देश की प्रगति की रफ़्तार धीमी पड़ सकती है। समाज के आखरी व्यक्ति के उत्थान और अंत्योदय के मार्ग पर प्रतिबद्ध रहने के लिए जरूरी है कि समय रहते ही इस समस्या का आंकलन कर सरकार द्वारा भविष्य के लिए विकास सम्बन्धी प्राथमिकताएं निर्धारित की जाएं।
2019-21 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण बुनियादी सुविधाओं तक भारतीय जनसँख्या की पहुंच का आंकलन करने हेतु एक महत्वपूर्ण संसाधन है। यह सर्वेक्षण जन स्वास्थ्य, विकास, पोषण और मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य जैसे अनेकों सूचकों पर उच्च गुणवत्ता वाला डेटा उपलब्ध कराता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के इंडिया पॉलिसी इनसाइट्स (आई.पी.आई.) द्वारा विकसित इंटरैक्टिव ट्रैकर एक नवीन पद्धति का उपयोग कर इसी डेटा को जिला स्तर पर विज़ुअलाइज़ करता है। आई.पी.आई. ट्रैकर साफ़ दर्शाता है की बिजली, पानी और स्वच्छता के क्षेत्र में बीते वर्षों में एक मजबूत बढ़त दर्ज़ हुई है।
सदी की शुरुआत में जहाँ देश के मात्र 60% घरों में बिजली पहुँचती थी, आज वही बढ़कर 97% हो गयी है। 2019 -21 सर्वेक्षण डेटा के मुताबिक कुल 26 जिलों में 100% आबादी बिजली कनेक्शन से जुड़े घरों में रहती है और वहीं 312 जिलों में यह आंकड़ा 99% के पार है। बिजली तक भारतीयों की पहुंच बढ़ाने हेतु एक बड़ा कदम 2005 में राजीव गाँधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (आरजीजीवीवाई) के तौर पर लिया गया। वर्ष 2014 में आरजीजीवीवाई को सम्मिलित कर दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति मिशन की शुरुआत हुई जिसके अंतर्गत अप्रैल 2018 में ही सम्पूर्ण ग्रामीण विद्युतीकरण का लक्ष्य हासिल किया गया।
बिजली आपूर्ति की तरह ही बेहतर पेयजल भी आज देश के घर घर तक पहुंच पा रहा है। 2019-21 राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार भारत में 96 % आबादी बेहतर पेयजल स्त्रोत से जुड़े घरों में रहती है। कुल 567 जिलों में यह आंकड़ा 90% से ज्यादा है। इसी तरह, बेहतर शौच सुविधाओं के मामले में भी भारत ने एक लम्बी छलांग लगाई है। 2019-21 में बेहतर शौच सुविधाओं का उपयोग करने वाली जनसंख्या का आंकड़ा 48.2% (2015-16) से बढ़कर 72% प्रतिशत हो गया है। इस अंतराल में कुल 96% जिलों ने बेहतर शौच सुविधाओं के मामले में औसतन 25 प्रतिशत का सुधार दर्ज़ किया। इसके पीछे स्वच्छ भारत मिशन के तहत बने 11 करोड़ घरेलु शौचालय, स्वच्छता केंद्रित जागरूकता अभियान और भारी जन भागीदारी का एक बड़ा योगदान है ।
ऐसी ही अनेकों सुधार की कहानियों के बीच कुछ ऐसी सुविधाएं भी हैं जो आज भी काफ़ी भारतियों की पहुंच से बाहर है। देश में 10 साल से ज्यादा स्कूली शिक्षा पाने वाली महिलाओं की राष्ट्रिय औसत महज 41% है।115 जिलों में तो ये संख्या 25 % से भी कम है। उज्ज्वला योजना में दिए गए 9.6 करोड़ गैस कनेक्शन के बावजूद भी, राष्ट्रीय परिवार स्वस्थ सर्वेक्षण द्वारा महज 58% घरों में ही खाना पकने के लिए स्वच्छ ईंधन मौजूद पाया गया। स्वच्छ ईंधन की नामौजूदगी या अवहनीयता से न केवल प्रदुषण होता है बल्कि इस्तेमाल करने वालों की सेहत पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है।
आज भारत में अधिकतर छोटे बच्चों को सम्पूर्ण टीकाकरण तो उपलब्ध है परन्तु 6 से 23 महीनो के बच्चों को पर्याप्त आहार पहुंचने के मामले में हम काफी पीछे है। इस सूचक पर हमारी राष्ट्रीय औसत एक निराशाजनक 11% है। शायद इसी या अन्य कारणों से देश में 5 वर्ष से ज्यादा उम्र के 32% बच्चों का वजन जरूरी वजन से कम है और 35% बच्चे अवरुद्ध भी हैं। बढ़ती जनसँख्या के साथ यही प्रतिशतें और ज्यादा लोगों की दशा का वर्णन करेगी। अतः वर्त्तमान की समस्याओं को बढ़ती जनसँख्या के नज़रिये से देखना आज अति आवश्यक है।
देश को जनसांख्यिकीय लाभांश का फायदा मिलना काफ़ी हद तक सभी नागरिकों तक बुनियादी सुविधाएं पहुंचने पर निर्भर करता है। इस लेख में जरूरी सेवाओं की सतह को महज खरोंचा भर गया है। अभी घर, पोषण, स्वस्थ सेवा, रोजगार, शिक्षा, आर्थिक विकास जैसे अनेकों विषय बाकी है। आज जरूरत है की सरकार द्वारा बुनियादी संकेतकों पर अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले जिलों की पहचान की जाए और उन तक जरूरतानुसार संसाधन पहुंचाए जाएं।
शुभम मुदगिल और रोहित कुमार, द क्वांटम हब (टी.क्यू.एच) नमक एक पब्लिक पालिसी फर्म में एसोसिएट और फॉउन्डिंग पार्टनर हैं।
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